सर्पगंधा (राउल्फिया सर्वेन्टीना) की जड़ों का भारतीय चिकित्सा पद्धति में बहुतायत से प्रयोग होता आ रहा है, परन्तु वर्तमान औषधीय पद्धति में भी काफी मात्रा में इसका प्रयोग हो रहा है। सर्पगंधा के पौधे की ऊंचाई मुख्यता 6 इंच से लेकर 2 फुट तक होती है। इसका तना एक मोटी खाल से ढका रहता है और यह गुच्छों में पाए जाते है इसके फूल मुख्य रूप से गुलाबी और सफेद रंग के ही होते है। अगर आपको किसी भी रूप से सर्प काट जाए तो यह पौधा काफी उपयोगी होता है, क्योंकि जहां भी सर्प या बिच्छू ने आपको काटा है तो उस स्थान पर इसे लगाने से राहत मिल जाती है।
सर्पगंधा पौधे की जड़, तना और पत्ती से कई चीजों का निर्माण होता है। इस पर अप्रैल से लेकर नंवबर तक लाल फूल लगते है। इसकी जड़े सर्पीली तथा 0.5 और 2.5 सेमी तक के व्यास की होती है. सर्पगंधा की जड़ों में काफी ज्यादा एल्कालाईडस पाया जाता है। आयुर्वेदिक तथा यूनानी चिकित्सा पद्धति में जड़ों का प्रयोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों, जैसे मस्तिष्क सम्बन्धी रोगों, मिरगी कंपन इत्यादि, आंत की गड़बड़ी तथा प्रसव आदि विभिन्न बीमारियों के उपचार में बहुतायत से उपयोग होता है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में सर्पगंधा की जड़ों का प्रयोग उच्चरक्त चाप तथा अनिद्रा की औषधियाँ बनाने में प्रयोग होता है।
भूमि तथा जलवायु
इसकी खेती विभिन्न मृदा किस्मों जैसे कि बलुवर, बलुवर दोमट तथा भारी जमीनों में हो रही है। इसे बहुत हल्की बलुवर जमीन जिसमें जीवांश पदार्थ की मात्रा कम हो नहीं उगाना चाहिये। यह पौधा अम्लीय तथा क्षारीय दोनों प्रकार की मिट्टियों में आसानी से उगाया जा सकता है। जिस भूमि का पी. एच. 8.5 से ज्यादा हो वह इसकी खेती के लिये उपयुक्त नहीं होती है। सर्पगंधा विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाया जा सकता है, किन्तु इसकी अधिक उपज गर्म तथा अधिक आर्दता वाली परिस्थितियों में मिलती है। प्राकृतिक रूप से सर्पगंधा पौधों के नीचे छाया में उगता है। लेकिन खुली जमीन तथा हल्की छाया में भी इसकी खेती की जा सकती है। जहाँ का तापक्रम 10 से 38 डिग्री सेन्टीग्रेड के मध्य रहता है, वे स्थान इसकी खेती के लिये उपयुक्त हैं।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
R.S.1: यह किस्म ज्वाहर लाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय द्वारा विकसित की गई है। इस किस्म में बीजों की संख्या 50-60 % होती है और इसकी सूखी जड़ों की औसतन पैदावार 10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
सर्पगंधा उगाने की तैयारी
इसकी जड़ों की अच्छी वृद्धि के लिए मई के महीने में खेत की गहरी जुताई करें और खेत को कुछ समय के लिए खाली छोड़ दें। खेत से पुराने पेड़ों की जड़ो या अन्य झाड़ियों आदि को खेत से निकाल देते हैं। पहली बरसात के तुरन्त बाद 10-12 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी खाद को खेत में मिलाकर खेत की पुनः जुताई कर देनी चाहिये। लगाने के पहले भी दो हल्की जुताईयाँ करके उसमें पाटा लगा देते हैं। जिससे खेत में ढेले न रह जाय। खेत में सुविधानुसार सिंचाई की नालियाँ भी बना लेना चाहिए।
विभिन्न विधियों जैसे सर्पगंधा के पौध बीज, तने तथा जड़ की कटिंग व जड़ों के टूठ लगाकर तैयार किये जा सकते हैं।
सर्पगंधा की बीज द्वारा होती बुवाई
इस विधि से सामान्यतः पौधा नहीं तैयार करते हैं, क्योंकि इसके बीजों का जमाव बहुत ही कम (20 से 25 प्रतिशत) होता है। यदि बीज के द्वारा ही तैयार करना है तो बिल्कुल ताजे बीजों का प्रयोग करना चाहिए। तीन महीना के भीतर तैयार बीज का अंकुरण प्रतिशत ठीक रहता है।
नर्सरी तैयार करना
इस विधि में करीब 6-8 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई के पूर्व बीजों को 5 प्रतिशत नमक के घोल में डाल देते हैं। जिससे खराब बीज ऊपर तैरने लगते हैं। इस विधि से उपचार करने पर न केवल अंकुरण अधिक होता परन्तु नर्सरी में होने वाली डैम्पिंग आफ बीमारी से भी बचाव होता है। नर्सरी में बीजों को बोने के पहले रात भर पानी भिगो देते हैं। उत्तर भारत में मई के महीने में बीजों को नर्सरी में बोते हैं। जुलाई के पहले हफ्ते तक पौधे खेत में लगाने योग्य तैयार हो जाते हैं। दक्षिण भारत में बरसात शुरू हो जाने पर नर्सरी में बीजों को बोते हैं। करीब 6 सप्ताह बाद पौधे खेत में लगाने योग्य हो जाते हैं। प्रति हेक्टेयर बीज द्वारा पौधे तैयार करने के लिये 500 वर्गमीटर भूमि नर्सरी के लिये पर्याप्त होती है।
जड़ों की बुवाई
ऐसे पौध की जड़े जिसमें एल्कलायड की मात्रा अधिक हो उनका चुनाव पौध लगाने के लिये करते हैं। इससे अधिक एल्कलायड देने वाले पौधे प्राप्त होंगे। पौध तैयार करने के लिए 7.5 से 10 से०मी० लम्बी जड़े काटते हैं। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जड़ों की मोटाई 12.5 मि.मी. से अधिक न हो तथा प्रत्येक टुकड़े में 2 गाँठे हों । इनको 45 X 30 के बीच की दूरी पर रोपित किया जाता है। इस प्रकार की जड़ों को करीब 5 से.मी. गहराई के नालियों में लगाकर अच्छी प्रकार से ढ़क देते हैं। इस विधि से फसल लगाने में करीब 100 कि.ग्रा. ताजी जड़ों के टुकड़ों की जरूरत होती है।
तने की बुवाई
तना कटिंग 15 से 22 सेमी को जून माह में नर्सरी में लगाते है। जब जड़ें व पत्तियों निकल आएं और उनमें अच्छी वृद्धि होने लगे तो कटिंग को निकालकर खेतों में लगाया जाता है।
रोपाई
बरसात का समय इसकी रोपाई के लिये उपयुक्त होता है। रोपाई के समय पौध की ऊंचाई 7.5 से 12 से.मी. के बीच होना चाहिए। नर्सरी से पौध उखाड़ते समय इस बात का ध्यान रहे कि उसकी जड़ें टूटने न पाये । उखाड़ने के बाद पौधों को भीगे बोरे या हरी पत्तियों से ढ़ककर खेत में सीधे ले जाकर लगा देना चाहिये। लाइन से लाइन 60 से.मी. की दूरी तथा पौध से पौध की दूरी 30 से.मी. होनी चाहिये।
सिंचाई
यद्यपि सर्पगंधा असिंचित अवस्था में पैदा किया जा सकता है लेकिन पानी की कमी की वजह से पैदावार कम हो जाती है। यदि सिंचित अवस्था में इसकी खेती की जा रही है तो इसे गर्मियों के अलावा एक माह में एक बार तथा गर्मियों में माह में दो बार सिंचाई करते हैं। यदि पौध लगाने के बाद बरसात नहीं होती है तो रोजाना हल्की सिंचाई पौध अच्छी तरह लगने तक करते हैं
खाद एवं उर्वरक
सर्पगंधा का पौधा पूरे वर्ष जमीन में रहने की वजह से काफी मात्रा में पोषक तत्व जमीन से ले लेता है। अतः एक निश्चित अंतराल पर गोबर की खाद का तथा उर्वरकों का प्रयोग करते हैं। खाद की मात्रा जमीन की किस्म तथा सिंचित अवस्था के ऊपर निर्भर करती है। प्रति हेक्टेयर 10 टन गोबर की खाद एवं नेत्रजन, फास्फोरस व पोटाश हर एक की 30 कि.ग्रा. की दर से बुवाई के पूर्व खेत में मिला देना चाहिए। इसके बाद 25 कि.ग्रा. नेत्रजन दो बार पौध अच्छी तरह लगने के बाद अगस्त-सितम्बर में तथा फरवरी-मार्च में देते हैं। बाद के दूसरे तथा तीसरे वर्षों में भी उपरोक्त दिये गये उर्वरकों की मात्रा प्रयोग करते हैं।
निराई-गुड़ाई
शुरू में पौधे की वृद्धि कम होने के कारण खेत में खर-पतवार काफी मात्रा में हो जाते हैं जिसकी वजह से पौधे की बढ़वार और भी कम हो जाती है। यदि इस अवस्था में खर-पतवार नियंत्रित नहीं किये गये तो ये सर्पगंधा के पौधे को ढक लेते हैं जिससे पौधे मर भी जाते हैं। अतः लगाने के 15-20 दिन के बाद खुरपी से निराई कर देनी चाहिये तत्पश्चात साल में दो बार और निराई गुड़ाई करना चाहिए।
फूलों की तुड़ाई
यदि सर्पगंधा की खेती इसकी जड़ों के उत्पादन के लिए की जा रही है तो फूल निकलने पर उनकी तुड़ाई कर देनी चाहिए नहीं तो बीज बनेंगे और जड़ों की उपज कम हो जायेगी। बीज इकट्ठा करनाः यदि सर्पगंधा के बीजों की जरूरत है तो खेत के किसी एक कोने में पौधों को छोड़ देते हैं जिससे कि उसमें बीज आ जायें। पौधों में जुलाई से फरवरी के मध्य बीज आते हैं। पके बीज के ऊपर बैंगनी व काले रंग का गूदा होता है बीजों को बीच-बीच में इकट्ठा करते रहते हैं, क्योंकि बीज एक साथ तैयार नहीं होते हैं। पके हुये बीजों के ऊपर का गुदा पानी में धोकर निकाल देते हैं। तत्पश्चात उन्हें साये में सुखाकर हवा बन्द डिब्बों में भरकर रख देते हैं।
कीट और रोकथाम
छोटे पंखों वाली सुंडी : यह ग्लाइफोड्ज़ वर्टमनैलज़ के कारण होती है। इससे पत्ते मुड़ जाते हैं और झड़ जाते हैं। यह हरे पत्तों को अपना भोजन बनाती है जिससे पत्तों का बहुत नुकसान होता है।
नियंत्रण- इसकी रोकथाम के लिए रोगोर 0.2 % की स्प्रे करें।
सफेद सुंडी: यह एनोमला पोलीटा के कारण होती हैं। यह नए पौधों पर हमला करती हैं जिससे यह सूख जाते हैं।
नियंत्रण- इसकी रोकथाम के लिए खेत की तैयारी के समय फोरेट ग्रैनुलस को मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें।
बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर धब्बा रोग: इस बीमारी से पत्तों की ऊपरी और निचली सतह पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। पत्ता पहले पीले रंग का हो जाता है फिर सूख कर गिर जाता है।
उपचार- इसकी रोकथाम के लिए डाइथेन एम-45 @400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर महीने के अंतराल पर नवंबर तक डालें|
जड़ गलन: यह कीट मैलोएडोगाइन इनकोगनीटा और मैलोएडोगाइन हाप्ला के कारण होते हैं। इससे विकास कम और पत्ते के आकार में कमी आती है।
उपचार- इसकी रोकथाम के लिए 3 जी कार्बोफिउरॉन 10 किलो या 10 जी फोरेट ग्रैनुलस 5 किलो प्रति एकड़ में डालें।
गहरे भूरे धब्बे: इससे पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।
उपचार- इसकी रोकथाम के लिए ब्लीटॉक्स 30 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
जड़ों की खुदाई, सुखाना तथा भंडारण
सिंचित अवस्था में जड़े 2 से 3 वर्ष की उम्र में खुदाई के लिये तैयार हो जाती है। इनकी खुदाई का उचित समय दिसम्बर माह है क्योंकि इस समय पौधा सुसुप्ता अवस्था में रहता है तथा पत्तियाँ भी कम होती है। इसकी जड़ें काफी गहराई तक जाती है, इन्हें अच्छी तरह खोदकर निकालना चाहिये। उसके बाद पानी में जड़े धोकर छाया में सुखाना चाहिये। बड़ी और मोटी जड़ों को अलग और पतली जड़ों को अलग कर देते है। तत्पश्चात जड़ो को 12 से 15 सेंटीमीटर के टुकड़ों काटकर जूट के बोरो में भरकर बाजार हेतु रखते हैं।
उपज
इस प्रकार किये गये प्रत्येक पौधे से करीब 100 ग्राम से 400 ग्राम तक जड़ों से प्राप्त होती है। परीक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि यदि 60 x 30 से.मी. में पौधे लगाये गये हैं तो करीब 1175 कि.ग्रा. तक सूखी जड़ें प्राप्त होती है। औसतन 10 कुन्तल जड़ें प्राप्त होती है। सूखी जड़ों का बाजार भाव लगभग 150 रूपये किलो होता है। चूंकि जंगलों में यह विलुप्त हो रही है और तेजी से इसका प्रयोग बढ़ता ही जा रहा है। अतः आने वाले समय में इसके बजार भाव में तेजी से वृद्धि होने की उम्मीद है।